“सपनों की चौपाल” एक ऐसी कहानी है, जो गाँव की मिट्टी से जुड़ी है और हर पन्ने पर सादगी, संघर्ष, और सामूहिकता की खुशबू बिखेरती है। यह कहानी है कुसुमपुर गाँव की, जहाँ लोग मिलकर हर मुश्किल का सामना करते हैं और अपने सपनों को हकीकत में बदलने का हौसला रखते हैं।
गाँव का सचिव, बबलू, अपनी ईमानदारी और मेहनत से गाँव की दशा बदलने का सपना देखता है। वह शिक्षा, पानी, बिजली, और विकास की ओर कदम बढ़ाता है, लेकिन हर राह में चुनौती भी साथ चलती है। प्रधान बाबूलाल, मंगला काकी, रामू काका, पप्पू हलवाई, और मास्टरजी जैसे जीवंत किरदार इस सफर को हास्य, ठिठोली, और अपने अनूठे अंदाज से और भी दिलचस्प बना देते हैं।
बबलू और राधिका की मासूम प्रेम कहानी, प्रधान बाबूलाल और प्रकाश ठाकुर की चुनावी नोकझोंक, और गाँव के बच्चों की शरारतें इस कहानी को हल्का-फुल्का और प्रेरणादायक बनाती हैं।
यह किताब न सिर्फ़ गाँव के विकास की कहानी है, बल्कि यह दिखाती है कि जब लोग एकजुट होते हैं, तो हर सपना पूरा हो सकता है। “सपनों की चौपाल” एक ऐसी यात्रा है, जो आपको गाँव की मिट्टी से जोड़कर सपनों की ऊँचाई तक ले जाएगी।
यह किताब उन सभी के लिए है, जो मानते हैं कि बदलाव की शुरुआत छोटे-छोटे प्रयासों से होती है।
